रामायण में सीता स्वयंवर

रामायण में सीता स्वयंवर

रामायण में सीता स्वयंवर

रामायण में सीता स्वयंवर हिंदू धर्मग्रंथ *रामायण* में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो अयोध्या के राजकुमार श्रीराम और मिथिला की राजकुमारी सीता के विवाह से जुड़ी है। इस घटना का वर्णन महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में मिलता है।

स्वयंवर का आयोजन

मिथिला के राजा जनक को एक बार यज्ञ भूमि जोतते समय भूमि से एक दिव्य कन्या प्राप्त हुई, जिसे उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में अपनाया और नाम दिया—सीता। जब सीता युवावस्था में पहुँची, तो उनके विवाह के लिए राजा जनक ने स्वयंवर का आयोजन किया।स्वयंवर में एक कठोर परीक्षा रखी गई—जिस राजकुमार में शिवजी के धनुष पिनाक को उठाकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने की शक्ति होगी, वही सीता से विवाह करेगा। यह धनुष अत्यंत भारी और शक्तिशाली था, जिसे देव, दानव और बड़े-बड़े योद्धा भी हिला नहीं सकते थे।

श्रीराम द्वारा धनुष भंजन

स्वयंवर में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम अपने भाई लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र के साथ पहुँचे। वहाँ कई वीर राजकुमार, (including)रावण, इस परीक्षा में असफल रहे। जब श्रीराम ने गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से धनुष को उठाया, तो उन्होंने इसे बड़ी सरलता से उठा लिया और जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, धनुष बीच से टूट गया। इस अद्भुत घटना को देखकर राजा जनक अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीराम का विवाह सीता से करने की घोषणा की। इसके बाद, श्रीराम और सीता का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ।

श्रीराम-सीता विवाह  श्री सीताराम-धाम-परिकर वंदना ( रामायण में सीता स्वयंवर )

स्वयंवर में धनुष भंजन के बाद, राजा दशरथ को आमंत्रित किया गया, और फिर वैदिक रीति-रिवाजों से श्रीराम और सीता का विवाह संपन्न हुआ। साथ ही, श्रीराम के तीनों भाई—भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न—का विवाह भी जनक परिवार की राजकुमारियों (मांडवी, उर्मिला और श्रुतकीर्ति) से हुआ।

महत्व और प्रतीकात्मकता

सीता स्वयंवर सिर्फ एक विवाह कथा नहीं है, बल्कि यह शक्ति, मर्यादा, और भगवान की दिव्यता का प्रतीक है। श्रीराम का धनुष तोड़ना यह दर्शाता है कि केवल मर्यादा पुरुषोत्तम ही देवी लक्ष्मी (सीता) के योग्य हैं। इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा पुरुषार्थ, मर्यादा और ईश्वरीय कृपा से असंभव भी संभव हो सकता है।

रामायण में सीता स्वयंवर