राम मंदिर का इतिहास

राम मंदिर का इतिहास केवल एक धार्मिक स्थल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक भी है। यह मंदिर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा है और इसका इतिहास संघर्ष, विश्वास और पुनर्निर्माण की गाथा कहता है। यह कहानी सदियों पुरानी है, जो भारत के धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों से गहराई से जुड़ी हुई है।

प्राचीन काल: अयोध्या और राम मंदिर की स्थापना

अयोध्या हिंदू धर्म के सात पवित्र नगरों में से एक मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था। त्रेता युग में जब श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त की और अयोध्या वापस लौटे, तब उनकी स्मृति में इस स्थान को और भी पवित्र माना जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि समय के साथ इस स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाया गया, जिसे राजा विक्रमादित्य (लगभग 100 ईसा पूर्व) ने पुनर्निर्मित करवाया था। इस मंदिर का उल्लेख कई ग्रंथों और स्थानीय लोककथाओं में मिलता है। मंदिर का अस्तित्व कई शताब्दियों तक बना रहा, लेकिन समय-समय पर बाहरी आक्रमणों के कारण इसे क्षति भी पहुंची।

मध्यकाल: मुगल शासन और बाबरी मस्जिद का निर्माण

मध्यकालीन भारत में जब मुगलों का शासन स्थापित हुआ, तब हिंदू मंदिरों पर कई हमले किए गए। 1528 ईस्वी में मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में राम मंदिर को गिराकर एक मस्जिद बनवाई, जिसे बाबरी मस्जिद कहा गया।हिंदू समुदाय ने हमेशा यह दावा किया कि बाबरी मस्जिद एक मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी और यह स्थान भगवान राम के जन्मस्थान का प्रमाण है। इसके बाद यह स्थान हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विवाद का विषय बन गया।

ब्रिटिश शासन और कानूनी विवाद की शुरुआत

1857 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद, अंग्रेजों ने भारत में फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई। इसी नीति के तहत 1859 में ब्रिटिश प्रशासन ने विवादित स्थल पर एक बाड़ (रेलिंग) लगा दी। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को अलग-अलग पूजा करने की अनुमति दी, जिससे विवाद शांत रहे। 1885 में महंत रघुबर दास ने ब्रिटिश अदालत में एक याचिका दायर कर मंदिर के पुनर्निर्माण की अनुमति मांगी, लेकिन अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह एक संवेदनशील मामला है और इससे सांप्रदायिक हिंसा भड़क सकती है।

स्वतंत्र भारत में राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत

1949: रामलला की मूर्तियों का प्रकट होना

22-23 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद के अंदर अचानक भगवान राम की मूर्तियां पाई गईं। हिंदू पक्ष का कहना था कि यह चमत्कारिक घटना थी, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि किसी ने जानबूझकर मूर्तियों को अंदर रख दिया था। इसके बाद सरकार ने इस स्थान को विवादित मानकर सील कर दिया।

1980-1990: राम मंदिर आंदोलन का विस्तार 1980 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन ने जोर पकड़ा। विश्व हिंदू परिषद (VHP) बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) जैसे संगठनों ने मंदिर निर्माण की मांग उठाई।

1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के समर्थन में रथयात्रा निकाली, जो पूरे देश में चर्चा का विषय बनी। इस यात्रा के दौरान कई जगहों पर हिंसा हुई और विवाद और गहरा गया।

1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस और इसके परिणाम

6 दिसंबर 1992 को लाखों कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। इसके बाद पूरे देश में दंगे भड़क उठे और हजारों लोग मारे गए। इस घटना के कारण भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव आया और राम मंदिर मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया।

1993 में भारत सरकार ने अयोध्या अधिनियम के तहत विवादित भूमि का अधिग्रहण कर लिया और मामला अदालत में चला गया।

2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में विवादित भूमि को तीन भागों में बांटने का निर्णय दिया।

1. रामलला विराजमान को 1/3 भूमि
2. निरमोही अखाड़ा को 1/3 भूमि
3. सुन्नी वक्फ बोर्ड को 1/3 भूमि
लेकिन यह फैसला सभी पक्षों को स्वीकार नहीं था, और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।

2019: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर विवाद पर अपना अंतिम फैसला सुनाया। कोर्ट ने 5 जजों की बेंच द्वारा सर्वसम्मति से निर्णय दिया कि:

पूरी विवादित भूमि रामलला विराजमान को दी जाए और वहां राम मंदिर बनाया जाए।
मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में 5 एकड़ भूमि मस्जिद निर्माण के लिए दी जाए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि पुरातात्विक सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, मस्जिद के नीचे एक हिंदू संरचना के अवशेष मिले थे, जिससे यह साबित होता है कि यहां पहले कोई मंदिर था।

2020-2024: राम मंदिर का निर्माण और उद्घाटन

5 अगस्त 2020: भूमि पूजन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के तत्वावधान में राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया।

22 जनवरी 2024: रामलला की प्राण प्रतिष्ठा
22 जनवरी 2024 को राम मंदिर का भव्य उद्घाटन हुआ |और भगवान रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इस आयोजन में लाखों श्रद्धालु, संत और देश-विदेश की हस्तियां शामिल हुईं।
राम मंदिर की विशेषताएँ
यह मंदिर नागर शैली में बनाया गया है, जो प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है।
मंदिर की लंबाई 360 फीट चौड़ाई 235 फीट और ऊँचाई 161 फीट है।
इसमें 392 खंभे और 5 मंडप हैं, जो पूरी तरह से शुद्ध पत्थरों से बनाए गए हैं।
गर्भगृह में भगवान रामलला की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है।
निष्कर्ष
राम मंदिर का इतिहास केवल एक धार्मिक स्थल की कहानी नहीं है, बल्कि यह आस्था, संघर्ष, धैर्य और न्याय का प्रतीक भी है। यह मंदिर न केवल हिंदू समाज की आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और गौरव का भी प्रमाण है।

इस मंदिर के निर्माण के साथ एक नया अध्याय शुरू हुआ है, जो भारत की सनातन परंपरा और भव्य विरासत को संजोने का कार्य करेगा।